बेबस पिता -14-Aug-2023
प्रतियोगिता हेतु
दिनांक: 14/08/2023
बेबस पिता
बेटी की विदाई पर
पिता बेबस होता है।
रोक नहीं सकता
जिगर के टुकड़े को
यह विधि का विधान
होता है।
जब होती बेटी शादी लायक
पिता सपने सजाता है।
अच्छा वर अच्छा घर मिले
यही आस मन में जगाता है।
शादी के दिन पिता
पुत्री से,,
ऑंख तक नहीं मिला पाता है।
रोकना चाहता बेटी को पर
रोक पिता फिर नहीं पाता है।
बेटी होती पराया धन
ना जाने किसने बनाया ये नियम?
भाई , मां, बहन सबके ऑंसू बहते हैं ।
पिता ही है जो
अपने आँसू छुपाता है।
मन में होता उसके डर कि
बिटिया उसे रोते ना देख पाएगी,,
शायद घर से विदाई के समय
बिटिया खुद पर
नियंत्रण नहीं रख पाएगी।
बेबस हर पिता उस वक्त जब
बेटी विदा होती है।
कर देती मजबूर पिता को
बनाने कलेजा पत्थर का
जब बेटी विदा होती है।।
शाहाना परवीन "शान"...✍️
मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश
Milind salve
14-Aug-2023 12:25 PM
Nice 👌
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राजीव भारती
14-Aug-2023 11:28 AM
जी अति उत्तम रचना।
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Abhilasha Deshpande
14-Aug-2023 11:09 AM
Nice
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